सूने-सूने गाँव शहर सब, सूनी सूनी गलियां हैं।
डरे-डरे से फूल खिल रहे, सहमी-सहमी कलियाँ।
थमे वक़्त के पहिया जैसा, अब हर दिन लगता है।
नदियों के तट पर भी तो अब, आती नहीं मछलियॉँ।
(सुफलता त्रिपाठी)
हो गए अब हम पुराने क्या करें ?
हो रहे बच्चे सयाने क्या करें ?
जिनको पाला था बहुत ही लाड़ से
अब अलग उनके ठिकाने क्या करें ?
घर था छोटा सा मग़र, रौनक तो थी।
प्यार के गुज़रे ज़माने क्या करें ?
संस्कारों की ग़ज़ब तालीम थी,
बे-अदब अब सब बहाने क्या करें?
बूढ़े कुछ माँ-बाप रोते सबसे छिपकर,
सिसकियों के हैं तराने क्या करें?
ड्राइंग रूमों में सजी हैं बोनसाई,
नीम बरगद अब पुराने करें?
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