sufalta tripathi, indian poetess, kavita

 सूने-सूने गाँव शहर सब, सूनी सूनी गलियां हैं। 
डरे-डरे से फूल खिल रहे, सहमी-सहमी कलियाँ। 
थमे वक़्त के पहिया जैसा, अब हर दिन लगता है। 
नदियों के तट पर भी तो अब, आती नहीं मछलियॉँ। 
                                                        (सुफलता त्रिपाठी)

क्या करें ?

हो गए अब हम पुराने क्या करें ?

हो रहे बच्चे सयाने क्या करें ?

जिनको  पाला था बहुत ही लाड़ से 

अब अलग उनके ठिकाने क्या करें ?



घर था छोटा सा मग़र, रौनक तो थी। 

प्यार के गुज़रे ज़माने क्या करें ?



संस्कारों  की ग़ज़ब तालीम थी, 

बे-अदब अब सब बहाने क्या करें?



बूढ़े कुछ माँ-बाप रोते सबसे छिपकर,

सिसकियों के हैं तराने क्या करें?

ड्राइंग रूमों में सजी हैं बोनसाई, 

नीम बरगद अब पुराने करें?

                                                                                                    

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