अभिव्यक्ति की आज़ादी,O.T.T.( Over The Top) Platform


अभिव्यक्ति की आज़ादी ज़रूरी है लेकिन कहीं  इस आज़ादी की आड़ में हम समाज को एक गलत दिशा तो नहीं दे रहे हैं।  मैं बात कर रहा हूँ बॉलीवुड सिनेमा जगत की जिसमें फिल्मों के प्रदर्शन से पूर्व सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र  लेना ज़रूरी होता है, जिससे ये निर्धारित होता है की मूवी या फिल्म जिसे आप पिक्चर भी कहते हैं किस उम्र के लोगों के लिए उचित है। 

पहले जहाँ फिल्म निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता था की मूवी के माध्यम से किसी को या समाज को ग़लत संदेश ना जाने पाए बल्कि कह सकते हैं एक डर होता था की अगर नेगेटिविटी ज़्यादा होगी तो फिल्म फ्लॉप होने का ख़तरा ज़्यादा होगा।  इसलिए उस समय ऐसी फिल्मों के निर्माण का चलन था जिससे  समाज को एक पॉजिटिविटी का अहसास होता था, विलेन पर हीरो की जीत अर्थात  बुराई पर अच्छाई की जीत, आपसी रिश्तों का महत्त्व इन सब देखने में या सुनने लगने वाली छोटी-छोटी बातों का काफ़ी महत्त्व होता था, क्योंकि निर्माता ये जानता था की परदे पर दिखाई जाने वाली घटनाओं का समाज में बहुत असर होता है। 

लेकिन अब अगर देखा जाए तो फिल्म निर्माताओं की सोच में अंतर साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। अब निर्माता इस बात से बेफ़िक्र दिखाई देते हैं, वो वो दिखाना पसंद करते हैं  जो की सभ्य समाज में किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं होता है। फिल्म निर्माताओं में एक होड़ सी देखने को मिल रही है कौन कितना ज़्यादा बोल्डनेस परोस पायेगा यहाँ ये बात याद रखना ज़रूरी है कि बोल्डनेस से मतलब अंतरंग और गाली गलौज से भरे सीन्स की भरमार से है। जिन्हें केवल वो किशोर किशोरी ही पसंद करते हैं जो फैमिली से इतर अपने करियर को उड़ान देने के लिए एक नए शहर में होते हैं वहां अपने करियर का बोझ अपने कंधे पर उठा के अनजान शहर में रहने वाले इन नवयुवकों पर परिवार का उतना नियंत्रण नहीं रहता और ना ही अच्छे बुरे का कोई बोध या संस्कारी बने रहने की कोई मजबूरी तो ऐसे में ये फ़िल्मी ज्ञान इनके मस्तिष्क और विचारों को तरोताज़ा करने का बेहतरीन साधन होता है। जो आज़ादी इनको इस अनजान शहर में मिलती है उसका ये भरपूर लुत्फ़ उठाते हैं। अंधाधुंध गालियां इनकी ज़ुबान में हमेशा सुशोभित रहती हैं ये बिलकुल भी दोस्तों और दुश्मनों में फर्क नहीं करते दोनों के लिए समान तरह की गालियां होती हैं बस दोस्त है तो मुस्कुराके माँ बहन, और दुश्मन है तो थोड़ा गंभीरता और उत्तेजना के साथ माँ बहन।  जहाँ लड़कियां कई सारे क्षेत्र में लड़कों से कन्धों में कन्धा मिलाके चल रही हैं इस क्षेत्र में भी बराबरी करने को आतुर दिखाई पड़ रही हैं सही भी है आखिर माँ बाप भी यही कहना पसंद करते हैं म्हारी छोरियाँ छोरों से काम हैं के, तो ऐसे अभिभावकों को, ये छोरियाँ बिलकुल निराश नहीं करतीं। 

आज समाज को एक नई दिशा देने के लिए आ चुका है ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म जहाँ निर्माता, निर्देशकों पर कोई बंधन नहीं है वो अपनी कल्पनाओं को आज़ादी से उड़ान दे रहे हैं और समाज को  वो दिखा रहे हैं जो किसी भी तरह से बोल्ड या बिंदास तो बनाता है लेकिन सभ्य नहीं।  एक होड़ सी देखने को मिल रही है कौन कितना ज़्यादा रियलिस्टिक बोल्डनेस या हिंसा दिखा पायेगा।  गालियां तो खाने के साथ मिठाई की तरह हो गई हैं अस्सी फीसदी वेब सीरीज़ में फ्री में सुनाई जाएंगी।

वेब संसार में लड़कियों के सामने या साथ गाली बकना कतई गलत नहीं है इस  प्रक्रिया में एक्ट्रेस भी बराबर अपनी ज़ुबान साफ़ करते नज़र आ जाएंगी, गालियों के साथ सेक्स भी एक ज़रूरी पार्ट है इन वेब सीरीज़ का ये न हों तो वेब सीरीज़ या यूँ कहें। ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म अधूरा नज़र आता है।  जैसे  हिंसात्मक दृश्यों का सजीव वर्णन किया जाता है वैसे ही सेक्स सीन्स में भी आप निराश नहीं होंगे एक्टर और एक्ट्रेस दोनों अपनी तरफ से बेस्ट परफॉरमेंस देते नज़र आ जाएंगे। हालांकि जैसा की कहावत है की एक्सेप्शन इज़ एव्री वेयर तो यहाँ भी कई सीरीज़ या फिल्म आपको  इन मसालों के बिना भी मिल जाएंगी तो सिलेक्शन है आपका आखिर दिमाग़ है आपका। 

अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल इस ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म पर फ़िल्मकार बखूबी कर रहे हैं बाक़ी ईज़ी टू अप्रोच इस मनोरंजक संसार से आप कितना अछूते रह पाएंगे ये चैलेंजिंग होगा। बाकी फिल्मकारों को ये समझना या सोचना ज़रूरी होगा की क्या वो अपना लेखक धर्म अच्छे से निभा रहे हैं। बाकी जैसे सिनेमाघरों की फिल्मों ने समाज को एक अलग दिशा दी है वैसे ही यक़ीनन ये ओ .टी.टी. प्लेटफॉर्म भी एक अलग ही सभ्य समाज का निर्माण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। 

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