अपेक्षा
जब तक आप किसी से अपेक्षा नहीं करते तब तक आप सुखी और खुश रहते हैं और जहाँ आप किसी से कोई उम्मीद या अपेक्षा कर लेते हैं वहीँ आप दुःख को आमंत्रण दे देते हैं। सोचिए आपका वो दोस्त जिससे आप कोई उम्मीद नहीं पालते वो आपके लिए अगर कुछ भी कर देता है तो आपको ख़ुशी मिलती है लेकिन जब आप उससे उम्मीद या आसरा लगा लेते हैं और वो अगर किसी कारणवश आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाता तो आपकी नज़र से उतर जाता है। लेकिन सोचिये क्या ये सही है सबकी अपनी मजबूरी होती है और सबकी अपनी स्वतंत्रता।
क्यों किसी से कोई अपेक्षा की जाए जबकि पता है की ये कष्ट दायक हो सकता है। निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म हमेशा सुख और शान्ति देता है, शास्त्रों में भी कहा गया है कर्म करना आपके बस में है फल आपके बस में नहीं क्योंकि जब हम बिना परिणाम की परवाह किये काम कर रहे होते हैं तो वो हमारी ख़ुशी के लिए होता है इसलिए उस काम में हम असाधारण ऊर्जा के साथ अपना सौ प्रतिशत देते हैं और उम्मीद से ज़्यादा प्राप्त करने में सफल होते है लेकिन जब हम सोचते हैं की हमें सिर्फ इतना काम करना है वो शायद किसी परिणाम के लिए होता है और कहीं न कहीं कोई मजबूरी या लालच के लिए होता है। सोचिये किसी मजबूरी में किया गया काम आपको असीमित सफलता दिला सकता है शायद नहीं।
देखा जाए अपेक्षा कहीं न कहीं हमारी कार्य क्षमता को भी प्रभावित है क्योंकि ये प्रक्रिया हमें कहीं न कहीं दुसरे पर निर्भर होने के लिए प्रेरित कर देती है जिससे हम अपना कम मूल्यांकन करके दुसरे को अधिक महत्त्व देने लगते हैं।
हम ये तो अपेक्षा कर लेते हैं कि दूसरे को हमारे लिए ये करना चाहिए वो करना चाहिए लेकिन क्या ये दूसरे को अपनी इच्छा के अधीन करना नहीं है, जबकि दूसरा भी उतनी ही स्वतंत्रता का अधिकार रखता है जितना कि हम रखते हैं तो अपनी अपेक्षा के कारण क्या हम दूसरे को कष्ट नहीं दे रहे होते हैं।
हमें अपने साथ-साथ दूसरे की भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए जिससे हमारे बीच एक अलग सम्बन्ध स्थापित होते हैं, और हम अपनी कार्यक्षमता का सही से उपयोग कर पाते हैं।
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धन्यवाद।
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